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कविता

मैया कबहि बढ़ैगी चोटी

सूरदास


मैया कबहि बढ़ैगी चोटी?
किती बेर मोहि दूध पियत भइ, यह अजहूँ है छोटी।
तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं, ह्वै है लाँबी मोटी।
काढ़त गुहत न्हवावत जैहै, नागिन-सी भुईं लोटी।
काँचौ दूध पियावति पचि पचि, देति न माखन रोटी।
सूरदास चिरजीवौ दोउ भैया, हरि हलधर की जोटी।।


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